'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत सांसदों पर लागू हों |
बीते वर्षों में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का निर्णय लिया गया था और इसी के तर्ज पर आज भी सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने पर उनका उस दिन का वेतन काट लिया जाता है । चूँकि लोकसभा व राज्यसभा के सांसद सरकारी संस्थाओं में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों की ही भॉंति सरकार के नुमाईंदे है, इसलिए 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का यह सिद्धांत हमारे लोकसभा व राज्यसभा के माननीय सांसदों व नेताओं पर क्यों नहीं लागू हो रहा है जबकि दिनांक 09 नवम्बर'2010 से आरंभ हुए संसद का शीतकालीन सत्र '2जी स्पक्ट्रम घोटले' की वजह से एक भी दिन पूरी तरह से नहीं चल पाया और दिनांक 13 दिसम्बर'2010 तक 23 दिन चलने वाले इस शीतकालीन सत्र में महज तीन घंटे ही सदन का कामकाज चला है और इसमें सरकार के लगभग डेढ़ अरब रूपए बर्बाद हो गए हैं । ऐसी स्थिति में मैं यह याचिका आपके आपके सम्मुख विचारार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ कि '2जी स्पेक्ट्रम घोटले की वजह से हड़ताल पर जाने के समान संसद का बहिर्गमन करने वाले हमारे इन लोकसभा/राज्यसभा के सासंदों के उतने दिनों के वेतन व दैनिक भत्ते क्यों न काटे जाएं जितने दिनों ये सांसद संसद का बहिर्गमन कर, संसद में अनुपस्थित रहें और इस तरह 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का नियम हमारे सांसदों पर भी क्यों न लागू हों ?'
Comment